शौक : वह अपने बच्चों की तरह पालते हैं बोनसाई

छत पर सैकड़ों की तादाद में उगाए गए बोनसाईछत पर सैकड़ों की तादाद में उगाए गए बोनसाईछत पर सैकड़ों की तादाद में उगाए गए बोनसाईछत पर सैकड़ों की तादाद में उगाए गए बोनसाईछत पर सैकड़ों की तादाद में उगाए गए बोनसाईछत पर सैकड़ों की तादाद में उगाए गए बोनसाईछत पर सैकड़ों की तादाद में उगाए गए बोनसाई

-घर की छत पर 30 साल में छत पर उगा चुके हैं कई सौ बोनसाई

गाजियाबाद, 01फरवरी (हि.स.)। शौक इंसान को न केवल सुकून देता है बल्कि कई बार समाज में उसकी प्रतिष्ठा में सम्मान भी बढ़ाता है। बशर्ते, वह व्यक्ति अपने शौक को शिद्दत के साथ पूरा करने की हिम्मत रखता है। ऐसा ही शौक है गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) के उद्यान अधिकारी शशि कुमार भारती को।

अपने इस शौक को पूरा करने के लिए ड्यूटी से पहले और ड्यूटी के बाद सुबह और शाम अपने व्यस्ततम समय से करीब 2 घंटे का समय निकाल ही लेते हैं और अपनी छत पर ही बोनसाई पौधे तैयार करते हैं। वह नियमित रूप से अपने इस काम को पूरी शिद्दत से अंजाम देते हैं। जिसका नतीजा यह है कि आज उनके मकान की छत पर ही 35 से 40 प्रजातियों के बोनसाई पौधे सैकड़ों की तादाद में तैयार हो गए हैं। कई बोनसाई पेड़ों की उम्र तो 25 से 30 साल तक के बीच हो चुकी है। यदि बाजार में इनकी कीमत का अंदाजा लगाया जाए तो यह कीमत लाखों रुपये में बैठेगी।

शशि कुमार भारती बताते हैं कि जब उन्होंने गोविंदपुरम में अपना मकान लिया था तो उन्होंने निर्णय लिया कि अपनी छत पर ही पेड़ पौधे उगाएंगे। ताकि उनका शौक भी पूरा हो सके और पर्यावरण भी बेहतर रह सके।

उन्होंने शुरुआती दौर में बहुत कम पेड़ की बोनसाई शुरू की थी जो आज कई सौ पौधों में बदल चुकी है।उन्होंने बताया कि आज उनकी छत पर 35 प्रजातियों के बोनसाई पेड़ हैं। जिनमें पीपल, बरगद, कैंडल ट्रील, सेल्टिस, पापरा केन्था, करौंदा ,जूनिप्रस्थ,कैथ, बॉक्सवुड, फाइकस, टाइगर बार्क,कदम, पिलखन, गूलर,फाइकस पांडा, बोगनबोलिया, जेट प्लांट, इमली,कल्पवृक्ष, बसेंड पत्ता,आडू ,अमरूद, अंजीर, चीकू,वैक्समॉल पीडिया, गलेबरी आदि प्रजाति के बोनसाई उनके मकान की छत पर हैं।

वह बताते हैं कि बोनसाई बनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होती है। इसके लिए वह कम से कम सुबह और शाम वह निश्चित रूप से एक-एक घंटे का समय देते हैं। श्री भारती कहते हैं कि बोनसाई बनाना हमें धैर्य सिखाता है। चूंकि कोई भी सम्पूर्ण बोनसाई पांच से सात साल का समय लेता है। यह एक ऐसी कला है, जब तक आपके पास यह बोनसाई रहती है तब तक कुछ न कुछ निरंतर कार्य चलता रहता है। जो हमें सफलता के लिए निरंतरता की सीख देता है।

पौधे बनाने के लिए कटाई, छटाई व वायरिंग की जाती है। साथ ही प्रत्येक वर्ष फरवरी माह में खाद और मिट्टी के साथ गमले बदले जाते हैं। उन्होंने बताया कि यह कार्य में पिछले 30 वर्षों से लगातार कर रहे हैं। नौकरी के व्यस्त कार्य से वह सुबह शाम घर पहुंचने के बाद अपने काम को अंजाम जरूर देते हैं।

उन्होंने बताया कि इस कार्य से उन्हें बेहद मानसिक सुकून भी मिलता है। वह कहते हैं कि सभी लोगों को इस तरह के शौक रखना चाहिए, ताकि उन्हें मानसिक सुकून के साथ-साथ आसपास का पर्यावरण भी बेहतर बन सके।

हिन्दुस्थान समाचार/फरमान अली/राजेश

   

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