सहिष्णुता स्थापित करने की ताकत साहित्य में होनी चाहिए : प्रो. अभय जैन

-विमर्श के माध्यम से पीढ़ियों तक पहुँची भारत की ज्ञान परम्परा

लखनऊ,17 फरवरी (हि.स.)। हमारे साहित्य में इतनी ताकत होनी चाहिए कि पंथ विरोधी होने के बाद भी सहिष्णुता को स्थापित किया जा सके। भारत जैसे राष्ट्र में जैन परंपरा, वैदिक परंपरा और बौद्ध परंपरा तीनों एक साथ चलती है। हमारा देश अपनी इसी विशेषता के कारण वैश्विक स्तर पर चमक रहा है। यह बातें उत्तर प्रदेश जैन विद्या शोध संस्थान के उपाध्यक्ष प्रो. अभय कुमार जैन ने कही। वह शनिवार को बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में शनिवार को उत्तर प्रदेश जैन विद्या शोध संस्थान लखनऊ एवं भारतीय हिन्दी परिषद्, प्रयागराज के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के संयुक्त महामंत्री डॉ. पवनपुत्र बादल ने कहा कि भारत की सारी ज्ञान परंपरा विमर्श के माध्यम से ही भविष्य की पीढ़ियों तक पहुँचती है। साथ ही जब हम अपनी परंपराओं को सहेजते हैं, तो वह आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए विरासत के समान होती है।

डॉ० सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त प्रो० फूल चंद्र प्रेमी ने अपने विचार रखते हुए कहा, कि इस देश का नाम भारत, जैन तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र भारत चक्रवर्ती के नाम पर पड़ा। साथ ही जब पूरे राष्ट्र में राजतंत्र हुआ करता था तब एकमात्र वैशाली में लोकतंत्र था। जैन समाज की इस देन को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयागराज के सभापति प्रो० सूर्य प्रकाश दीक्षित ने चर्चा के दौरान कहा, कि जब हम आधुनिक युग में प्रवेश कर रहे थे, तब हमारे युग नायक महात्मा गॉंधी भी जैन दर्शन से प्रभावित थे। इसके अलावा एकांतवाद भी जैन दर्शन से ही जन्म लिया है, जिसके अंतर्गत हम अनेकान्तवाद से होते हुए एकांतवाद में प्रवेश करते हैं।

भारतीय हिन्दी परिषद् प्रयागराज के सभापति प्रो० पवन अग्रवाल ने बताया कि भाषा विद्रोह के कारण आज हिन्दी भाषा का साहित्य आधा - अधूरा रह गया है। आज आवश्यकता है कि विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों का ध्यान आकर्षित करते हुए भाषा के पुनर्विकास की दिशा में कदम उठाये जाये।

कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन एवं बाबासाहेब की प्रतिमा को पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ हुई। इसके पश्चात आयोजन समिति की ओर से अतिथियों को पुष्पगुच्छ एवं स्मृतिचिन्ह भेंट कर उनके प्रति आभार व्यक्त किया गया। मंच संचालन का कार्य प्रो० योगेन्द्र प्रताप सिंह द्वारा किया गया। बीबीएयू हिन्दी विभाग के प्रमुख प्रो० राम पाल गंगवार एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्रो० योगेन्द्र प्रताप सिंह उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/बृजनन्दन/पदुम नारायण

   

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