आत्मा अपने अस्तित्व को भूलकर अपने को शरीर मान रही है: सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज

साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज सतवारी, जम्मू में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि दीक्षा के समय तन, मन, धन अर्पित किया जाता है। यह शरीर आपका नहीं है। आत्मा अपने अस्तित्व को भूलकर अपने को शरीर मान रही है। धन के कारण दुनिया में झगड़े हो रहे हैं। आजकल मुकद्दमें परिवार में चल रहे हैं। कभी कहा जाता था कि भाई भाई की भुजा है। अब भाई भाई का दुश्मन है। धन के कारण से इंसान उलझा है। 

अगर मनुष्य धरती पर नहीं है तो सृष्टि का कोई महत्व नहीं है। सृजन का आधार ही मनुष्य है। जड़ पदार्थ कुछ नहीं कर सकते हैं। 

आत्मा न हो यह संसार जड़ है। इसलिए निरंजन एक भी जीव को अमर लोक नहीं जाने दे रहा है। इसलिए मन गुरु को अर्पित किया। 

यह संसार सपने की तरह है। इस मानव तन में सुषुम्ना नाड़ी है। वो तुरीया अवस्था में जा सकता है। कई गुणा चेतना बढ़ जाती है। बाकी किसी में यह नहीं है। तुरीयातीत में पहुँचता है तो दुनिया बनाने की ताकत आ जाती है। विश्वामित्र से देवता भी डरते थे। ऐसा सिस्टम किसी अन्य जीव में नहीं है। भय, आहार, मैथुन सबमें है। हमारा शरीर आहार से बना है। जितना अच्छा आहार मनुष्य लेता है, कोई नही लेता है। जिस शेर के मुँह में इंसान का माँस लग जाता है, वो अन्य जीव नहीं खाता है। उसे अच्छा नहीं लगता है। वो इंसान को ढ़ूँढ़ता है। लेकिन उसमें भी भय है। इंसान से भी डरता है। अन्य कुछ जीवों मगरमच्छ, हाथी, गेंडा, जिराफ आदि से भी डरता है। भय सबमें है। भोजन सब कर रहे हैं। सेक्स भी सब कर रहे हैं। पर किसी में इंसान जैसी बनावट नहीं है। पृथ्वी का राजा मनुष्य है। इंसान सबसे बड़ा इसलिए है कि वो ध्यान में जाकर आंतरिक जगत देख सकता है। अगर भजन नहीं कर रहा है तो हीरा समान जन्म गँवा रहा है। यह शरीर विषयों के लिए नहीं मिला है। इसे पाकर भक्ति भजन करो। देवता लोग भी इस शरीर को पाना चाहते हैं। इस शरीर में बहुत विकल्प हैं। इसे पाकर कुछ भी पाया जा सकता है। 

अनल पक्षी आकाश में रहता है। वो केवल हवा खाता है। बहुत से लोग हैं, हम ऋषि मुनियों की बात सुनते हैं कि इतने इतने दिन खाए-पीये बिना रहे। आदमी आश्चर्य करता है। यह तो बता दिया कि इतने दिन नहीं खाया। पर यह कोई नहीं बता पाता है कि आधार क्या था। जब नहीं खाया तो जीवित कैसे रहे। मछली में ब्लड है। जिसमें भी ब्लड है, उसे आक्सीज़न चाहिए। मछली कहाँ से आक्सीजन लेती है। जल दो गैसों का मिश्रण है। उसमें आक्सीजन भी है। उसके शरीर में सिस्टम है कि वो जल से आक्सीजन निकालती है। लेकिन आप और हमारे शरीर में यह सिस्टम नहीं है। हम पानी में जाते हैं, हमें आक्सीजन नहीं मिलता है तो हम डूब कर मर जाते हैं। 

जब दीपावली का दीप जलता है तो साँप भूमिगत हो जाता है। फिर वो वसंत ऋतु में बाहर आता है। बाहर क्यों नहीं निकलता है इतने देर। क्योंकि साँप वक्रावक चलता है। साँप के शरीर का तापमान बाहरी तापमान पर निर्भर करता है। हमारे तापमान हमेशा 98 प्रतिशत रहता है। हमारे शरीर में आंतरिक तापमान का सिस्टम है। चाहे सर्दी है, चाहे गर्मी है। साँप के शरीर का तापमान बाहरी तापमान से संबंध रखता है। इसलिए जब गर्मी होती है तो साँप बहुत परेशान हो जाता है। हमारी मिट्टी में गुण है कि वो सर्दी में गर्म हो जाती है और गर्मी में ठंडी। तो भूमिगत होने के बाद साँप वायु खाता है। सच्चाई क्या है। पर इसको विज्ञान नहीं मानने वाला है। सच्चाई यह है कि जो हमारे ऋषि मुनि जो बड़ी साधनाएँ किए तो कैसे जीए। कुछ भूमिगत समाधि लेते हैं तो कैसे जीए, यह एक कला है। आदमी 30-35 सैकेंड अपनी स्वांस रोक सकता है। आक्सीजन कहाँ से आई। वो कोई और काम नहीं कर रहा है। ज्यादा एनर्जि नहीं लग रही है। उसी पवन को अंदर घूमी देकर घुमाते रहते हैं। पलटू साहिब भी कह रहे हैं कि उस ध्यान अवस्था में भूख और प्यास नहीं लगती है। शरीर को होल्ड पर रख देते हैं। जैसे आप किसी से बात करते हैं तो दूसरा कहता है कि एक मिनट होल्ड पर रखना। तो बिल नहीं आता है उसका। इस तरह आपके शरीर में सिस्टम है कि उसे होल्ड पर रखा जा सकता है। 

जीवित मरने पर भी मैंने बहुत कहा है। एक यह पूरा सच है कि शरीर का आधार स्वांस है। उर्जा का सबसे बड़ा साधन स्वांस है। बाकी अलग चीजें हैं। काफी लोग भोजन नहीं करते हैं। काफी लोग पानी नहीं पीते हैं। शरीर की मुख्य उर्जा स्वांस है। पूरे शरीर का संचालन प्राण करते हैं। 

साहिब का सहज मार्ग है। उसमें कठिन तप नहीं करना है। इंसान कभी कभी गहन निद्रा में चला जाता है तो शरीर होल्ड पर हो जाता है। इसलिए कहते हैं कि मौत के 24 घंटे तक अंतिम संस्कार नहीं करना चाहिए। हो सकता है कि वो गहन निद्रा में हो। ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं कि डाक्टर जिन्हें मृतक घोषित कर देते हैं तो वो अचानक जाग उठता है। अखनूर में भी एक आदमी चिता पर से जागा था। अखबारों में भी आय़ा था। मुर्दा हो गया जिंदा। लोग कहने लगे कि भूत आ गया। डाक्टरों ने तो मृत घोषित कर दिया था। वो भी चौंक गये। वो ऐसे नहीं बोलते हैं। वो देखते हैं कि हार्ट काम नहीं कर रहा है। बाकी अंग काम नहीं कर रहे हैं। तब बोलते हैं। कानपुर में भी अर्थी पर लेटा हुआ मुर्दा जिंदा हो गया था। 

इस तरह ध्यान में जब सुषुम्ना खुलती है तो बाकी शरीर के अंग स्टाप हो जाते हैं। इंसान कई साल तक अपने शरीर को होल्ड पर रख सकता है। सुषुम्ना में जाने के बाद आदमी मर नहीं जाता है। शरीर होल्ड पर हो जाता है।

   

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