नदी की पूजा का अर्थ केवल घंटा बजाना नहीं, वरन उसकी सफाई है : नमामि गंगे

वाराणसी, 27 फरवरी (हि.स.)। गंगा तट पर गंदगी न करने के लिए मंगलवार को नमामि गंगे की टीम ने श्री काशी विश्वनाथ धाम के गंगा द्वार से मोक्ष तीर्थ मणिकर्णिका घाट तक स्वच्छता की अलख जगाई। अभियान में टीम के सदस्यों ने गंगा किनारे से प्रदूषित सामग्रियों को निकाल कर कूड़ेदान तक पहुंचाया। श्रद्धालुओं के साथ गंगा द्वार पर मां गंगा के साथ आरती उतारी। लाउड स्पीकर से गंगाष्टकम व द्वादश ज्योतिर्लिंगों का उच्चारण कर कार्यक्रम के संयोजक राजेश शुक्ला ने लोगों को जागरूक किया।

इस दौरान उन्होंने कहा कि मां गंगा सहित अन्य गंगा की सहायक नदियों में लोग अपने घर की बासी पूजा सामग्री साड़ियां, कपड़े भी डाल देते हैं। यह गंगा की पूजा है या उस पर अत्याचार ? वस्तुतः नदी की पूजा का अर्थ केवल घंटा बजाना नहीं, वरन उसकी सफाई है। यह प्रयास ही नदी की वास्तविक पूजा है।

राजेश शुक्ला ने कहा कि गंगा भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरुदंड व सनातनी अध्यात्म का सार हैं। हमें गंगा को सहेजना होगा। गंगा स्वयं में एक संस्कार हैं इसे मैला न करें। 50 करोड़ से अधिक लोगों की आजीविका केवल गंगा के जल पर निर्भर है। 25 करोड़ लोग तो पूर्ण रूप से गंगाजल पर आश्रित हैं। गंगा आस्था ही नहीं आजीविका हैं। गंगा केवल जल का ही नहीं, बल्कि जीवन का भी स्रोत हैं। हमारे लिए गंगा नदी की तरह नहीं, बल्कि एक जागृत स्वरूप हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/मोहित

   

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