भारतीय ज्ञान परंपरा का संरक्षण एवं प्रसार जनोपयोगी हो: प्रो. बिहारी लाल शर्मा

—सम्पूर्णानंद संस्कृत विवि में 96 हजार दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए कार्यशाला

वाराणसी,19 मार्च (हि.स.)। सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में सरस्वती भवन पुस्तकालय में रखी गई 96 हजार दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए मंगलवार से द्वितीय 15 दिवसीय कार्यशाला शुरू हुई। इंदिरा गांधी कला केंद्र के अंतर्गत राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के निदेशक डॉ अनिर्वाण दास के निर्देशन में बनी टीम कार्यशाला में पांडुलिपियों का संरक्षण करेंगी। परिसर स्थित योग साधना केन्द्र में डॉ अनिर्वाण दास ने कहा कि द्वितीय कार्यशाला से कार्य में गतिशीलता बढेगी। यहां संरक्षित दुर्लभ 96 हजार पांडुलिपियों का संरक्षण तीन चरणों में किया जाएगा, प्रथम सूचीकरण, द्वितीय चरण कंजर्वेशन तथा तृतीय चरण में डिजिलाइजेशन कार्य किया जाएगा। उन्होंने बताया कि कार्यशाला में 40 लोगों को प्रशिक्षित करके उनसे इस कार्य को कराया जाएगा। इसमे देश के उद्भट विद्वानों का भी सहयोग प्रशिक्षक के रूप में लिया जाएगा।इस प्रशिक्षण कार्य में शैक्षणिक पक्ष भी है । जिसके अंतर्गत उसमे निहित भारतीय ज्ञान परंपरा के ज्ञान राशि जनोपयोगी बनाया जाएगा। विश्वविदयालय के कुलपति प्रो.बिहारी लाल शर्मा ने कहा कि सरस्वती भवन पुस्तकालय में संरक्षित दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए देश के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी, भारत सरकार की संस्कृति मंत्रालय , प्रदेश की राज्यपाल और कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल, प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र, अपर मुख्य सचिव डॉ सुधीर कुमार बोबड़े के अथक प्रयास से इस कार्य को मूर्त रूप दिया जा रहा है । उन्होंने कहा कि पांडुलिपि का अनुरक्षण- संवर्धन निष्ठा और ईमानदारी से किया जाए। अनुरक्षण कार्य को प्रशिक्षित कर्मियों के साथ निष्ठा- ईमानदारी से किये जायें । क्योंकि पांडुलिपि केवल विश्वविद्यालय की ही संपदा नहीं है ,बल्कि राष्ट्र की संपदा है। इस कार्य में किसी भी तरह की लापरवाही न हो, समुचित प्रशिक्षण के लाभ उठाए जाएं। कार्य की शुचिता और उत्कृष्टता का ध्यान रखा जाये।

—सरस्वती भवन पुस्तकालय का शिलान्यास सर जान हिवेट ने किया था

कुलपति प्रो.बिहारी लाल शर्मा ने बताया कि हस्तलिखित सरस्वती भवन पुस्तकालय का शिलान्यास 16 नवंबर 1907 ई. को सर जान हिवेट ने किया था। लगातार सात वर्षों तक संस्कृति तथा संस्कृत के प्रेमी उदार राजाओं, महाराजाओं, श्रेष्ठ नागरिकों तथा कर्तव्यनिष्ठ राजकीय कर्मचारियों के अनवरत प्रयास से इस महान पुस्तकालय का वर्तमान भव्य भवन 1914 ई में निर्मित हो गया। इस उद्देश्य की पूर्ति के पीछे सबसे बड़ा प्रयत्न संस्कृत महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ आर्थर वेनिस का था। 06 फरवरी 1914 ई. शुक्रवार के शुभ मुहूर्त पर संयुक्त प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर जेम्स स्कोर्गी मेस्टन के•सी•एस•आई की अध्यक्षता में इस पुस्तकालय का उद्घाटन समारोह सम्पन्न हुआ । तब इसका नाम प्रिंसेज ऑफ वेल्स सरस्वती भवन पुस्तकालय घोषित हुआ था।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/मोहित

   

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