हमारी संस्कृति और सभ्यता के निर्माण स्थल हैं मठ और मंदिर : स्वामी विमर्शानंद

कोलकाता, 05 मई (हि.स.)। मंदिर और मठ कोई कल्पना नहीं हैं वरन ये अपनी संस्कृति और सभ्यता के निर्माण स्थल है तथा ऊर्जा के केन्द्र है। मठों और मंदिरों को समझने के लिए मनुष्यता और अध्यात्म को समझना होगा। इन केन्द्रों को पुनर्जागृत करने का प्रयास करना होगा।

उपरोक्त बातें श्री लालेश्वर महादेव मंदिर, शिव बाड़ी, बीकानेर के पूज्य स्वामी श्री संवित् विमर्शानंद गिरि महाराज ने श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय द्वारा कोलकाता के रथीन्द्र मंच सभागार में आयोजित आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री स्मृति व्याख्यानमाला समारोह के उन्नीसवें व्याख्यान के अंतर्गत राष्ट्र निर्माण के आधार स्तम्भ हैं : मठ और मंदिर' विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कही।

प्रधान वक्ता एवं दीनदयाल शोध संस्थान, दिल्ली के प्रधान सचिव अतुल जैन ने कहा कि प्राचीन काल से मठ-मंदिर केवल देवालय नहीं है, यह एक भरा पूरा संसार है जहां श्रद्धा, भक्ति और विश्वास का महत्व है।

प्रधान अतिथि प्रख्यात कथावाचक एवं श्रीराम भक्त पंडित श्रीकांत शर्मा बाल व्यास' ने कहा कि शुद्ध मानसिकता अगर हो तो मन मंदिर बन सकता है। राष्ट्र के निर्माण में धर्म और अध्यात्म का अपना एक विशिष्ट महत्व है।

विशिष्ट अतिथि राजस्थान के शहरी विकास राज्यमंत्री झाबर सिंह खर्रा ने कहा कि यदि मन का भाव शुद्ध हो तो रैदास की भांति मन चंगा तो कठौती में गंगा' वाली कहावत चरितार्थ हो सकती है।

कार्यक्रम के आरंभ में सुप्रसिद्ध गायिका सुश्री इन्दु चांडक ने राम वंदना की प्रस्तुति दी। स्वागत भाषण दिया पुस्तकालय के अध्यक्ष महावीर बजाज ने तथा धन्यवाद ज्ञापन किया पुस्तकालय के मंत्री बंशीधर शर्मा ने। कार्यक्रम का संचालन किया विदुषी साहित्यकार डॉ. तारा दूगड़ ने। कार्यक्रम में प्रख्यात आयकर सलाहकार सज्जन कुमार तुल्स्यान एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी, सत्यप्रकाश राय, नन्दकुमार लढ़ा, अरुण प्रकाश मल्लावत सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।

हिन्दुस्थान समाचार/मधुप

   

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