प्रकृति के उपभोक्ता से अब प्रकृति सेवक बनने की जरूरत : प्रो. दुर्गेश पंत

देहरादून, 22 मई (हि.स.)। अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड व उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद की ओर से बुधवार को आंचलिक विज्ञान केंद्र यूकॉस्ट में ‘योजना का हिस्सा बनें’ विषयक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यूकॉस्ट के महानिदेशक प्रो. दुर्गेश पंत ने कहा कि अब हमें प्रकृति के उपभोक्ता से प्रकृति सेवक बनने की ओर अग्रसर होना चाहिए। उन्होंने प्रकृति संरक्षण, संवर्धन और वेब ऑफ लाइफ पर विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की शुरुआत छायाचित्र प्रदर्शनी से हुई।

मुख्य अतिथि पद्मभूषण डा. अनिल प्रकाश जोशी ने हिमालय क्षेत्र की जैव विविधता, उसके संरक्षण पर विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि इकोलॉजी और इकोनाॅमी के परस्पर सहयोग से ही सर्वांगीण विकास की परिकल्पना कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्र जैवविविधता का हॉटस्पॉट होने के साथ प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से अतिसंवेदनशील है। ऐसे में इस क्षेत्र में विज्ञान आधारित विकास की भूमिका और बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि पारिस्थितिकीय तंत्र के संतुलन के लिए स्थानीय समुदायों की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानना होगा और इनके कौशल विकास तथा क्षमता निर्माण पर भी ध्यान देना होगा। साथ ही पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में हुए डेटा आधारित अनुसंधान पर ध्यान देना होगा। यूकॉस्ट के संयुक्त निदेशक डॉ. डीपी उनियाल ने भी जैव विविधता संरक्षण पर अपने विचार व्यक्त किए।

प्रकृति संरक्षण सबकी जिम्मेदारी

जैव विविधता बोर्ड के सदस्य सचिव आरके मिश्रा ने जैव विविधता प्रबंधन समिति के कार्यों, लक्ष्यों और आगामी प्रस्ताव की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि प्रकृति संरक्षण सबकी जिम्मेदारी है। साथ ही गत वर्षों में जैव विविधता बोर्ड की ओर से विभिन्न क्षेत्रों में किए गए कार्यों और प्रस्तावित जैव विविधता स्थलों की जानकारी के लिए एक लघु फिल्म प्रदर्शित की गई।

सम्मानित किए गए विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेता

कार्यक्रम में राज्य चिन्ह फोटोग्राफी प्रतियोगिता और विभिन्न स्कूल में आयोजित कला प्रतियोगिता, स्लोगन प्रतियोगिता और निबंध लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को भी सम्मानित किया गया। शीतलाखेत क्षेत्र और वहां पर आयोजित जैव विविधता संरक्षण पर बनी एक लघु फिल्म भी प्रदर्शित की गई। जैविविधता बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. धनंजय मोहन ने कहा कि हमें वन क्षेत्र को सीखने के क्षेत्र के रूप में देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि आनंद वन जैसे और भी क्षेत्र विकसित किए जाने चाहिए, जो लर्निंग क्षेत्र का काम करेंगे।

हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/वीरेन्द्र

   

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