हिंदी पत्रकारिता दिवस : पत्रकारिता के बदलते प्रतिमान, चुनौतियां और सुझाव पर रखे विचार

देहरादून, 30 मई (हि.स.)। हिंदी पत्रकारिता दिवस पर दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से गुरुवार की शाम ‘आज की पत्रकारिता में पत्रकारिता कहां है, चुनौतियां और सुझाव’ विषय पर विचार गोष्ठी आयोजित की गई।

गोष्ठी के प्रारंभ में लेखक व साहित्यकार डाॅ. मुनिराम सकलानी की पत्रकारिता पर आधारित पुस्तक ‘उत्तराखंड की पत्रकारिता : स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर वर्तमान तक’ का लोकार्पण किया गया। पुस्तक में पत्रकारिता व उसका महत्व, भारत में पत्रकारिता का इतिहास, स्वतंत्रता आंदोलन, उसके बाद उत्तराखंड की पत्रकारिता, प्रमुख पत्र-पत्रकारों का परिचय व उत्तराखंड से प्रकाशित होने वाले प्रमुख पत्र आदि की जानकारी दी गई है।

लोकार्पण के बाद आज की पत्रकारिता में पत्रकारिता को खोजने के प्रयास और चुनौतियां तथा उसके प्रशस्त मार्ग के संदर्भ में आठ अतिथि वक्ताओं ने अपने सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए। यह विचार गोष्ठी हिंदी पत्रकारिता व क्षेत्रीय पत्रकारिता के इतिहास, मीडिया स्वामित्व, पत्रकारिता द्वारा अक्सर जमीनी स्थितियों, पत्रकारिता की सच्चाइयों, सोशल मीडिया की आवश्यकता और अन्य कम चर्चा वाले विषयों के दृष्टिकोणों पर केंद्रित रही। विचार गोष्ठी में वक्ताओं ने देश व विश्व स्तर पर हिंदी पत्रकारिता एवं उत्तराखंड में पत्रकारिता के ऐतिहासिक संदर्भ और राष्ट्रमंडल की खोज को रेखांकित किया। साथ ही सेंसरशिप और उसके इतिहास, उप निवेश वादियों की स्व-सेंसरशिप व चुप्पी के दंश के साथ उत्तराखंड में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की स्थिति पर चर्चा की।

अल्पसंख्यक, वंचित, दलित व पत्रकारीय चुप्पी, खेमेबाजी पर भी वक्ताओं ने चर्चा किए। वक्ताओं का दृष्टिकोण था जब मीडिया जनता की आवाज के रूप में साथ खड़ा नहीं रह पाता है तो समाज को स्वयं भी देखने, सुनने, सामूहिक आवाज उठाने व कार्य करने की जरुरत होनी चाहिए। गोष्ठी में पत्रकारों की पर्यावरणीय व अन्य खोजी रिपोर्टिंग से जुड़े विविध पक्षों पर भी वक्ताओं ने विचार रखे।

अतिथि वक्ता के रूप में वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत, त्रिलोचन भट्ट, रश्मि सहगल, राहुल कोटियाल, वर्षा सिंह, विनीत पंछी और शाश्वती तालुकदार थे। संचालन सामाजिक इतिहासकार डाॅ. योगेश धस्माना ने किया।

हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/वीरेन्द्र

   

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