संतों ने किया ''इंडिया से भारत की ओर अभियान'' के पोस्टर का विमोचन

संतों ने किया 'इंडिया से भारत की ओर अभियान' के पोस्टर का  विमोचन

उदयपुर, 07 जनवरी (हि.स.)। भारत का निर्माण करने हेतु हमें अपने स्वयं से शुरुआत करनी होगी तभी वसुधैव कुटुंबकम् की परिकल्पना साकार होगी। यह बात आनंदम धाम पीठ वृंदावन के पीठाधीश्वर सद्गुरु रितेश्वर महाराज ने रविवार को इंडिया से भारत की ओर अभियान के पोस्टर का विमोचन के दौरान कही।

आहुति सेवा संस्थान की ओर से स्वागत वाटिका सेक्टर-4 में संत समागम कार्यक्रम में महामंडलेश्वर आचार्य नर्मदा शंकर पुरी, दिगंबर खुशाल भारती, हितेश्वरानंद सरस्वती, लक्ष्मण पुरी, पूर्व विधायक धर्मनारायण जोशी ने इंडिया से भारत की ओर अभियान का पोस्टर विमोचन और ऑडियो गीत का भी लोकार्पण किया।

संस्थान के अध्यक्ष और कार्यक्रम संयोजक डॉ. विक्रम मेनारिया ने बताया कि सनातन धर्म को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से इस राष्ट्रीय अभियान का शुभारंभ किया गया है। संत समागम में सद्गुरु रितेश्वर महाराज ने आशीर्वचन में कहा कि जबसे सृष्टि है तब से संत भी हैं और गृहस्थी भी हैं। संत वह है जो व्यक्तिगत आशाओं से ऊपर उठकर राष्ट्र और प्राणी मात्र के कल्याण हेतु संकल्पबद्ध है, गृहस्थ वह है जो निजी गृह में स्थित हो। दोनों में आज गहरी खाई है। गृहस्थ का यह अर्थ नहीं कि वह कुछ भी करें। उन्होंने कहा कि आज डिप्रेशन बड़ी समस्या है। इसका कारण ईश्वर के विधान को ना मानना है। हमें बुद्ध बनना चाहिए, ना कि बुद्धू। उन्होंने आह्वान किया कि माता-पिता अपने बच्चों को इतना संस्कारवान अवश्य बनाएं कि वह कह सकें कि मेरी मां सुपर हीरोइन है और मेरे पिता सुपर हीरो।

उन्होंने कहा कि भारत का निर्माण करने हेतु हमें अपने स्वयं से शुरुआत करनी होगी तभी वसुधैव कुटुंबकम् की परिकल्पना साकार होगी। सबसे पहले स्वयं जाग कर विचारों से हम भारतीय बनें। विवाह संस्कार के बारे में उन्होंने कहा कि उसे इवेंट न बनने दें। दो तरह के कार्ड बनाएं, एक विवाह में आने वाले रिश्तेदारों और अतिथियों के लिए हो और दूसरा सनातन मूल्यों को आगे बढाने वाले साधुओं के लिए हो। इससे हमारी सन्त परम्परा को हर हिन्दू परिवार समझ सकेगा, सनातन संस्कारों का मान बढ़ेगा। राष्ट्रीय महाकाल सेना के संस्थापक दिगंबर खुशाल भारती महाराज ने अपने ओजस्वी उद्बोधन में कहा कि हमें संगठित होकर सनातन धर्म के परिचायक मंदिरों और मठों हेतु तन मन धन से आहुति देनी चाहिए। उन्होंने जाती वर्ग के भेदभाव को छोड़कर संगठित हो मनुष्य बनने का आह्वान किया।

इस अवसर पर महामंडलेश्वर आचार्य नर्मदा शंकर पुरी महाराज ने कहा कि जो भगवान से भयभीत होता है वह कभी भक्त नहीं होता, अतः भगवान से मन को जोड़कर भक्ति की ओर बढ़ें। अनुष्ठान फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष स्वामी हितेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि मेवाड़ की धरा भक्ति, आस्था, शौर्य और पराक्रम की धरा है। उन्होंने महान योद्धाओं से प्रेरणा लेकर तपस्वी त्यागी और बलिदानी बनने का आह्वान किया। लक्ष्मण पुरी ने अपने ओजस्वी काव्य पाठ से मेवाड़ी संस्कृति का बखान किया।

पूर्व राज्य मंत्री जगदीश राज श्रीमाली, स्वप्निल स्वाभाविक, दिनेश वरदार, चंद्रप्रकाश सुराणा, हेरंब जोशी, डॉ. रेनू पालीवाल, आशीष सिंहल, विवेक सिंह, देवाराम राजपुरोहित ने संतों का स्वागत किया।

हिंदुस्थान समाचार/सुनीता कौशल

   

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