गुवाहाटी ग्रेनेड विस्फोट के आरोपी को गौहाटी उच्च न्यायालय ने दी जमानत

गुवाहाटी, 16 जनवरी (हि.स.)। गौहाटी उच्च न्यायालय ने गुवाहाटी ग्रेनेड विस्फोट के आरोपी इंद्र मोहन बोरा को जमानत दे दी है। बोरा पर गुवाहाटी सेंट्रल शॉपिंग मॉल के पास वर्ष 2019 में हुए ग्रेनेड विस्फोट में कथित संलिप्तता का आरोप है। इसके लिए कड़े गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत उसे गिरफ्तार किया गया था। इस विस्फोट में 12 लोग घायल हो गए थे।

न्यायमूर्ति माइकल ज़ोथनखुमा और मालाश्री नंदी की पीठ ने मोहन बोरा को यह कहते हुए जमानत दे दी कि उसके खिलाफ पेश किए गए सबूत यह संकेत नहीं देते हैं कि वह ग्रेनेड विस्फोट में शामिल था। हालांकि, पीठ ने कहा कि वह उग्रवादी संगठन का सदस्य हो सकता है।

जमानत देने का उच्च न्यायालय का निर्णय इस आकलन पर आधारित था कि बोरा के खिलाफ सबूत ग्रेनेड हमले में उसकी संलिप्तता का संकेत देने के लिए अपर्याप्त थे। हालांकि, यह स्वीकार किया गया था कि बोरा एक उग्रवादी संगठन का सदस्य हो सकता है, अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि ग्रेनेड विस्फोट के विशिष्ट कार्य में शामिल होने के सबूत के बिना केवल संगठन का सदस्य होना उसे हिरासत में रखने के लिए पर्याप्त नहीं है।

न्यायमूर्ति माइकल ज़ोथनखुमा और न्यायमूर्ति मालाश्री नंदी की पीठ ने कहा कि आज तक अभियोजन पक्ष के 177 गवाहों में से केवल 20 से पूछताछ की गई है, और दो सह-अभियुक्तों को पहले ही जमानत पर रिहा कर दिया गया है।

अदालत ने बोरा द्वारा न्यायिक हिरासत में बिताए गए समय चार साल सात महीने बाईस दिन को भी अपने फैसले में एक कारक के रूप में माना।

इस बात पर प्रकाश डाला गया कि अपीलकर्ता की लंबी अवधि की कैद के बावजूद, मुकदमा धीरे-धीरे आगे बढ़ा था। इसके अलावा, अदालत ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई के संवैधानिक अधिकार को ध्यान में रखा।

बोरा की रिहाई का आदेश 50 हजार रुपये के जमानत बांड और इतनी ही राशि की दो जमानत राशि जमा करने पर दिया गया। अदालत के फैसले ने इस सिद्धांत को रेखांकित किया कि किसी आरोपित को दोषी साबित होने तक निर्दोष माना जाता है और जमानत एक अपवाद के बजाय एक नियम है। खासकर जब अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य आरोपित की आपराधिक कृत्य में प्रत्यक्ष भागीदारी का दृढ़ता से प्रमाणित नहीं करता है।

हिन्दुस्थान समाचार / श्रीप्रकाश/अरविंद

   

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