लघु भारत है काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, जहां होता है राष्ट्र का चिंतन : रमेश

बीएचयू के स्थापना दिवस पर आरएसएस का पथ संचलन

-बीएचयू के स्थापना दिवस पर संघ के स्वयंसेवकों ने किया पथ संचलन

वाराणसी,14 फरवरी (हि.स.)। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के 109वें स्थापना दिवस बसंत पंचमी पर बुधवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी दक्षिण भाग के मालवीय नगर के स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश में पथ संचलन किया। कृषि विज्ञान संस्थान से पथ संचलन प्रारम्भ हुआ जो संकाय मार्ग से होते हुए लंका स्थित विश्वविद्यालय के सिंह द्वार पर पहुंचा।

पथ संचलन में पहली बार सुसज्जित रथ पर भगवान श्रीराम दरबार की झांकी राहगीरों में आकर्षण का केन्द्र रही। इसी के साथ वाहन पर भारत माता, महामना पं.मदन मोहन मालवीय, आद्य सरसंघचालक डॉ.केशव बलिराम हेडगेवार, माधव सदाशिव गोलवरकर गुरू जी की झांकी संचलन का नेतृत्व कर रही थी। सिंह द्वार से संचलन विश्वविद्यालय के स्थापना स्थल (ट्रामा सेंटर) पहुंचा। वन्देमातरम गायन के बाद कार्यक्रम का समापन हुआ। संचलन में सभी स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में घोष वादन की धुन पर क्रमबद्ध पंक्ति में अनुशासन से चल रहे थे। पथ संचलन के दौरान स्वयंसेवकों पर कई जगह पुष्प वर्षा भी हुई। पूरे राह पथ संचलन में शामिल स्वयंसेवकों के अनुशासित कदमताल लोगों में आकर्षण का केन्द्र रहा।

इसके पहले कृषि विज्ञान संस्थान के मैदान में काशी दक्षिण भाग मालवीय नगर की ओर से आयोजित पथ संचलन कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी प्रांत के प्रांत प्रचारक रमेश ने स्वयंसेवकों को संघ के गौरवमयी इतिहास को बताया। उन्होंने कहा कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय लघु भारत है, जहां समग्र राष्ट्र चिंतन और दर्शन प्राप्त होता है। भारतीयता किस प्रकार उत्कर्ष की ओर बढ़े, यही इस विश्वविद्यालय का लक्ष्य है। 1929 में नागपुर के मोहिते का बाड़ा शाखा में महामना मदन मोहन मालवीय की भेंट डॉ.हेडगेवार से हुई। महामना ने संघ के उत्तम कार्यां को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए समाज से धनराशि एकत्र करने की बात कही। इस पर डॉ हेडगेवार ने उत्तर दिया कि मुझे केवल आपका सानिध्य चाहिए। प्रांत प्रचारक ने स्वयंसेवकों को बताया कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में वर्ष 1928 में संघ कार्य भैयाजी दाड़ी सहित 30 स्वयंसेवकों ने प्रारम्भ किया था। माधव सदाशिव गोलवरकर (श्रीगुरु जी) को संघ से जोड़ने वाले भैयाजी दाड़ी ही थे। 1936 से 1940 के बीच में संघ कार्य के विस्तार के लिए स्वयंसेवकों द्वारा समर्पित राशि से दो कमरों का भवन महामना ने बनवाया था, जिसे आपातकाल के समय में तत्कालीन प्रशासन ने हटा दिया।

उन्होंने कहा कि एक समय ऐसा था जब हिन्दुओं को एकत्र करना मेंढ़क को तराजू में तौलने के बराबर था, परन्तु आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। संघ से निकला कोई भी व्यक्ति अपने मानस में राष्ट्र को प्रथम रखता है, देश के सामने आयी विभिन्न चुनौतियों में संघ देश के साथ खड़ा रहता है। इसी कारण 1962 भारत-चीन युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री ने 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों को दिल्ली आमंत्रित किया था जिसमें तीन हजार स्वयंसेवकों ने गणवेष में भाग लिया। प्रांत प्रचारक ने कहा कि श्री रामजन्मभूमि मुक्ति के लिए संघ ने देश भर में जनजागरण किया। जिसका परिणाम 22 जनवरी 2024 को अयोध्या राममन्दिर के रूप में पूरे विश्व ने अनुभव किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता बीएचयू चिकित्सा विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. सत्यनारायण संखवार ने किया। प्रो. संखवार ने कहा कि निष्ठावान चरित्रवान व्यक्ति का निर्माण करना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का लक्ष्य है। अपने विभिन्न आनुषांगिक संगठनों के द्वारा संघ समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को स्वयं से जोड़ने का कार्य करता है।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में संघ का भगवा ध्वज लगाया गया। स्वयंसेवकों ने विश्वविद्यालय का कुलगीत प्रस्तुत किया। अतिथियों का परिचय मालवीय नगर कार्यवाह डॉ. अरुण देशमुख ने कराया। कार्यक्रम में प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय टोली सदस्य रामाशीष ,अवध प्रान्त बौद्धिक प्रमुख सुनील , विभाग संघचालक डॉ.जे.पी. लाल, विभाग प्रचारक नितिन, भाग प्रचारक विक्रान्त आदि ने भी भागीदारी की।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/पदुम नारायण

   

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