लोकसभा चुनाव : पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सियासी रण में ढेर हुए बड़े-बड़े सूरमा

मेरठ, 26 मार्च (हि.स.)। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीतिक सरजमी बड़ी उर्वर है। यहां के सियासी रण में राजनीति के बड़े-बड़े सूरमाओं को महामुकाबलों में हार मिली है। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से लेकर कांशीराम, मुफ्ती मोहम्मद शहीद, मायावती, अजित सिंह भी शामिल रहे हैं। यहां के मतदाताओं ने दिग्गजों को करारी शिकस्त दी है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनीति का ककहरा पढ़ने वाले कई राजनेता देश के सियासी क्षितिज पर सूरज बनकर चमके तो कई बार दिग्गजों को भी यहां करारी हार का सामना करना पड़ा है। पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न चौधरी चरण सिंह को 1971 में अपने पहले लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर संसदीय सीट से हार का सामना करना पड़ा। उन्हें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के ठाकुर विजयपाल सिंह ने हराया था। मुजफ्फरनगर संसदीय सीट से 1989 में मुफ्ती मोहम्मद सईद ने चुनाव जीता था और केंद्र में गृह मंत्री बने थे। लेकिन 1991 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के नरेश बालियान ने मुफ्ती मोहम्मद सईद को हरा दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में रालोद अध्यक्ष रहे चौधरी अजित सिंह ने सपा-रालोद-बसपा गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा, लेकिन भाजपा के डॉ. संजीव बालियान ने अजित सिंह को करारी शिकस्त दी। 1984 में कांग्रेस के धर्मवीर त्यागी ने प्रदेश के पूर्व उप मुख्यमंत्री नारायण सिंह को हराया।

मेरठ लोकसभा क्षेत्र से नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद सेना के जनरल शाहनवाज खान तीन बार सांसद चुने गए। इसके बाद मोहसिना किदवई दो बार चुनाव जीतकर केंद्र में मंत्री बनी। मोहसिना किदवई को भाजपा के अमरपाल सिंह ने हराया। 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के टिकट पर फिल्म अभिनेत्री नगमा को भी हार का सामना करना पड़ा।

कैराना लोकसभा सीट से उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को भी हार का सामना करना पड़ा है। 1984 में कांग्रेस के अख्तर हसन ने लोकदल के श्याम सिंह को हराकर चुनाव जीता। यहां से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में 44445 वोट हासिल करके मायावती तीसरे स्थान पर रही। 1980 में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी सिंह की पत्नी गायत्री देवी ने चुनाव लड़ाई। उन्होंने कांग्रेस आई के उम्मीदवार और प्रदेश के पूर्व उप मुख्यमंत्री नारायण सिंह को हरा दिया।

बागपत लोकसभा सीट से 1977 में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने रामचंद्र विकल को हराकर पहली बार लोकसभा चुनाव जीता। इसके बाद 1984 में चौधरी चरण सिंह के सामने समाजवादी दिग्गज राजनारायण ने चुनाव लड़ा। इस चुनाव में राजनारायण को हार का सामना करना पड़ा और वे तीसरे स्थान पर रहे। 1998 में भाजपा के सोमपाल शास्त्री ने रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह को हरा दिया। 2014 में भाजपा के डॉ. सत्यपाल सिंह ने चौधरी चरण सिंह को हरा दिया। 2019 में रालोद के अजित सिंह के पुत्र जयंत चौधरी को भी हार का सामना करना पड़ा।

सहारनपुर संसदीय क्षेत्र से 1998 में बसपा संस्थापक कांशीराम ने चुनाव लड़ा, लेकिन भाजपा के नकली सिंह ने कांशीराम को 59836 वोटों से शिकस्त दी। इसके बाद 1984 में कांग्रेस के यशपाल सिंह ने सियासी दिग्गज रशीद मसूद को हराया। सहारनपुर संसदीय सीट से रशीद मसूद ने दस बार चुनाव लड़ा और पांच बार जीत हासिल की।

बिजनौर लोकसभा सीट पर 1989 में मायावती ने चुनाव लड़कर मंगलराम प्रेमी को हराकर पहली जीत दर्ज की। 1991 में भाजपा के मंगलराम प्रेमी ने मायावती को पराजित कर अपनी हार का बदला ले लिया।

बुलदंशहर लोकसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी सांसद चुने गए। 2009 में गाजियाबाद लोकसभा सीट से उस समय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने जीत हासिल की। कांग्रेस के राजबब्बर भी गाजियाबाद से लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। रामपुर लोकसभा सीट से दो बार फिल्म अभिनेत्री जयाप्रदा ने जीत हासिल की तो एक बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। संभल लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव और रामगोपाल सिंह यादव सांसद रह चुके हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/ डॉ. कुलदीप/सियाराम

   

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