नई इबारत लिखने निकले वसीम मियां....

बरेली, 26 अप्रैल (हि.स.) । यूपी की बरेली लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां मुस्लिमों के वोट से हार जीत तय होती हैं। इस बार आईएमसी चुनाव में दम भर नहीं पाई जिसकी वजह से उनके प्रत्याशी का पर्चा खारिज हो चुका हैं। चुनाव मैदान में अकेले मुस्लिमों के रहनुमा बनकर उभरे वसीम मियां लोकसभा चुनाव में मुसलमानों से जुड़े मुद्दों को लेकर आम आदमी तक पहुंच रहे हैं। डिजिटल की दुनियां में भी वसीम मियां खासे जानकार हैं। जब लोगों को कंप्यूटर के बारे में पता नहीं था उस समय वसीम मियां उसके मास्टर थे।

फिलहाल बरेली लोकसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उतरे वसीम मियां अपनें शेर से शुरुआत कर कहते हैं कुछ ना कर सका तो एक शमा जला जाऊंगा.. गिरते गिरते भी एक परचम लहरा जाऊंगा...वसीम मियां कहते हैं चुनाव में आने का मक़सद युवाओं में जागरूकता लाने की है। ताकि युवा वर्ग चुनाव में आगे आए और अपनी भागीदारी सुनिश्चित कराए। विकास को लेकर वसीम कहते हैं बरेली शहर विकास के मामले में भले ही आगे हों लेकिन उनके हिसाब से बरेली पिछड़ गया हैं। उत्तर प्रदेश में बरेली अपनी एक अलग पहचान रखता है उसके बावजूद यहां का युवा बेरोज़गार हैं और नौकरी की तलाश में दूसरे राज्यों में जाकर भटक रहा हैं। मेरे हिसाब से तों विकास की परिभाषा युवाओ से शुरू होती हैं। बरेली में बड़े स्तर पर ज़री दरदोज़ी और सुरमे का काम था जिसके लिये बरेली जानी जाती थी। वों काम लगभग खत्म होनें की कगार पर हैं युवा बेरोज़गार हों चुका हैं। मुस्लिमों को लेकर वसीम मियां कहते हैं मुस्लिम वोटो का हमेशा इस्तेमाल किया गया। आजादी के बाद से अब तक मुसलमानों के जीवन में कोई बदलाव नहीं दिखा।1989 के बाद हम एक भी मुस्लिम सासंद बरेली को नहीं दें पाए। ये एक ऐसी सीट हैं यहां के नतीजों में मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका निभाता है लेकिन फिर भी इस सीट से मुस्लिम प्रत्याशी नहीं जीत सके। उन्होंने कहा इसका कारण मुस्लिम रहनुमाई की कमी है।

हिन्दुस्थान समाचार/देश दीपक गंगवार/बृजनंदन

   

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