परशुराम मंदिर में भागवत कथा के दूसरे दिन उमड़े श्रद्धालु

जम्मू, 5 मई (हि.स.)। गुरूकी महत्वता हमारे जीवन में अनुपम है क्योंकि गुरू के बिना हम जीवन का सार ही नहीं समझ सकते हैं। लेकिन इस बात का सदैव ही ध्यान रखना चाहिए कि गुरू के समक्ष चंचलता नहीं करनी चाहिए और सदा ही अल्पवासी होना चाहिए। जितनी आवश्यकता है उतना ही बोलें और जितना अधिक हो सके गुरू की वाणी का श्रवण करें। यह विचार गंग्याल परशुराम मंदिर में चल रहे श्रीमदभागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक जी ने कहे।

उन्होंने कहा कि गुरू चरणों की सेवा का अवसर मिलना परम सौभाग्य होता है, जो अनमोल है। इसलिए गुरू सेवा को समर्पित भाव से करना और उनके आदेश का पालन सदा ही करना चाहिए। गुरू की महिमा अपार है और उनकी करूणा अदभुत है। उन्होने कहा हमारे जीवन में विचारों का आदान प्रदान रोम-रोम से होता है इसके लिए सिर्फ नाक, कान और आखें ही नहीं होती हैं। संत महात्मा की दृष्टि को दिव्य बताते हुए कहा गया कि हम उतना ही देख सकते हैं जितनी दूर तक हमारी दृष्टि जाती है, लेकिन संत जन अनंत तक देखने की दृष्टि रखते हैं।

उन्होंने कहा जो इस दुनिया में आया है उसे एक दिन जाना ही है जब लाभ होता है तो हानि भी निश्चित होती है। सत्संग तो जीवन की धारा बदल देता है जिसमें आप ज्ञान और भक्ति की धारा में बहने लगते हैं, लेकिन यहां पर भी यदि कई बार लोग सत्संग करते हैं लेकिन उसका मूल नहीं समझ पाते, जिससे जीवन पर्यंत सत्संग करने के बाद भी अंत में उनको कुछ भी हासिल नहीं होता है। वहीं कथा के दूसरे दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे खासकर महिला श्रद्धालु बड़ी तादाद में उपस्थित रही।

हिन्दुस्थान समाचार/राहुल/बलवान

   

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