पूर्वांचल के लोकसभा चुनाव में बज रहा मनोज सिन्हा का डंका

- मनोज सिन्हा का नाम लिए बगैर नहीं हो रही जनसभा समाप्त

गाजीपुर, 21 मई (हि.स.)। गाजीपुर लोकसभा का चुनाव सातवें चरण में संपन्न होगा।सभी पार्टियां चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी हैं। जनसंपर्क के साथ ही नुक्कड़ सभाओं का दौर शुरू है। एक तरफ जहां जनपदों में सभी पार्टियों के बड़े नेताओं का दौरा शुरू है तो वहीं प्रत्याशियों के समर्थन में छोटी सभाएं भी व्यापक पैमाने पर हो रही हैं।

जनसभा चाहें किसी पार्टी या किसी उम्मीदवार के पक्ष में हो, लेकिन एक चीज सभी जनसभा में देखने को मिल रही है की पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा का नाम लिए बगैर किसी की जनसभा पूरी नहीं हो पा रही है। जिसका स्पष्ट कारण यह भी है की मनोज सिन्हा द्वारा 2014 से 2019 के कार्यकाल के दौरान गाजीपुर में कराए गए लाखों करोड़ों के विकास कार्य लोगों के सर चढ़कर बोल रहे हैं। एक तरफ जहां भाजपा प्रत्याशी के जनसभाओं में उनके कार्यों का बखान किया जा रहा है। वहीं विपक्षी पार्टियों द्वारा उनके कार्यों को किसी अन्य योजनाओं का नाम बताते हुए भाषण दी जा रही है। लेकिन मनोज सिन्हा का नाम जरुर लिया जा रहा है।

गौरतलब हो कि 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ लेने के साथ ही मनोज सिन्हा भी रेल राज्य मंत्री के रूप में केंद्र सरकार में शपथ लिए। इसके बाद उत्तर प्रदेश के पिछड़े जनपदों में शुमार गाजीपुर में विकास की एक लहर सी चल पड़ी। गाजीपुर को केंद्र बनाकर किए जा रहे विकास के कार्य केवल गाजीपुर ही नहीं बल्कि बलिया मऊ चंदौली तक नजर आने लगे। रेलवे स्टेशन,रेल यात्री सुविधाओं का विस्तार, रेलवे दोहरीकरण, विद्युतीकरण, गाजीपुर ताड़ीघाट मऊ रेल परियोजना जैसे विभागीय कार्यों के साथ ही गाजीपुर में रेलवे ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना की गई।

इस दौरान एक वर्ष बाद उन्हें संचार मंत्रालय स्वतंत्र प्रभार भी संभालने का मौका मिला। रेल मंत्री व संचार मंत्री रहते हुए जनपद में उन्होंने जहां विभागीय कार्य तो कराए ही उसके साथ ही अपने प्रभाव व निजी संबंधों के आधार पर वाराणसी गोरखपुर फोरलेन सड़क का निर्माण, गाजीपुर बारा गहमर फोरलेन सड़क का निर्माण, मरदह, जखनिया, सैदपुर फोरलेन सड़क का शिलान्यास, गाजीपुर में मेडिकल कॉलेज की स्थापना जैसे तमाम महत्वपूर्ण कार्य कराए गए। स्थिति यह रही की 2019 की लोकसभा चुनाव में जब मनोज सिन्हा प्रत्याशी रहे वह मंच से दावा करते रहे की आजादी के बाद से गाजीपुर को प्राप्त विकास के धन से अधिक मैने अगर अपने कार्यकाल में न दी हो तो मुझे वोट मत करिएगा। जातिवाद की आधी में डूब चुके चुनाव में इस तरह के विकास के नाम पर वोट मांगने वाले नेता बिरले ही मिलते हैं। हालांकि गाजीपुर का दुर्भाग्य कहे या मतदाताओं का निर्णय 2019 के चुनाव में मनोज सिन्हा लगभग सवा लाख मत से चुनाव हार गए। सांसद बनने के बाद ही बसपा सांसद अफजाल अंसारी ने विकास की योजनाओं के बाबत सरेआम पत्रकारों से कहाकि मुझे भी मंत्री बनवा दो तब मैं विकास कर पाऊंगा। जो गाजीपुर के मतदाताओं को एक आईना था।

2024 में मनोज सिन्हा का लोकसभा चुनाव से कहीं कोई संबंध नहीं है, वह जम्मू कश्मीर में लेफ्टिनेंट गवर्नर बन संवैधानिक पद पर बैठे हुए हैं। उनकी ना कोई जनसभा,ना रैली,ना संपर्क उसके बावजूद गाजीपुर लोकसभा के साथ ही बलिया घोसी तक में लोकसभा प्रत्याशियों के मंच पर मनोज सिन्हा का नाम जरूर सुनाई पड़ जाता है। जनता पूर्वांचल का विकास पुरुष की संज्ञा प्राप्त कर चुके मनोज सिन्हा के कार्यों की चर्चा आज भी करती नजर आ रही है। भाजपा सरकार के कार्यकाल में उनके द्वारा कराए गए कार्यों का पार्टी प्रत्याशी को लाभ मिल पाता है या नहीं यह तो 4 जून को मतगणना में स्पष्ट हो पाएगा। लेकिन एक बात खुलकर देखने को मिल रही है कि मंच चाहे किसी पार्टी का हो, झंडा बैनर किसी पार्टी का लगा हो जब तक मनोज सिन्हा का नाम नहीं लिया जाता तब तक जनसभा समाप्त नहीं हो पाती है।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीराम जायसवाल

/राजेश

   

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