विवाह और विवाह विच्छेद पर समान नागरिक संहिता में प्रभावशाली व्यवस्थाएं

देहरादून, 06 फरवरी (हि.स.)। उत्तराखंड विधानसभा में बहुचर्चित समान नागरिक संहिता बिल मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रस्तुत कर दिया। 202 पृष्ठीय इस बिल में कई महत्वपूर्ण व्यवस्थाएं शामिल हैं। इन्हीं में विवाह और विवाह विच्छेद विषयक व्यवस्था भी शामिल हैं।

इसके अध्याय एक में समान नागरिक संहिता में कहा गया है कि विवाह हेतु अपेक्षित आवश्यकताएं एक पुरुष और एक महिला के बीच विवाह अनुष्ठापित/अनुबंधित किया जा सकता है, यदि निम्नलिखित अपेक्षित आवश्यकताएं पूर्ण होती हों यानी विवाह के समय दोनों पक्षकारों में से, न तो वर की कोई जीवित पत्नी हो और न वधू का कोई जीवित पति हो तभी संभव है। इसी प्रकार विवाह के समय दोनों पक्षकारों में से कोई पक्षकार न रह जाए। चित्त विकृति के परिणाम स्वरूप विधिमान्य सम्मति देने में असमर्थ न हो या विधिमान्य सम्मति देने में समर्थ होने पर भी इस प्रकार के या इस सीमा तक मानसिक विकार से पीड़ित न रहा हो कि वह विवाह के लिए अयोग्य हो जाए।

इसी क्रम में उन्मत्तता का बार-बार दौरा पड़ने से पीड़ित न हो तथा विवाह के समय पुरुष ने इक्कीस वर्ष की आयु और स्त्री ने अठारह वर्ष की आयु पूर्ण कर ली हो तब यह विवाह मान्य रहेगा। विवाह के पक्षकार प्रतिषिद्ध नातेदारी की डिग्रियों के भीतर न हों, या भीतर हों तो भी दोनों पक्षकारों में से किसी भी एक को शासित करने वाली रूढ़ि या प्रथा उन दोनों के मध्य विवाह अनुमन्य करती हो समान नागरिक संहिता में कहा गया है कि परन्तु यह कि ऐसी रूढ़ि और प्रथा लोकनीति और नैतिकता के विपरीत न हो तथा किसी भी विधि के अन्तर्गत विवाह प्रतिषिद्ध न हो। इस व्यवस्था में कहा गया है कि पुरुष एवं महिला के मध्य विवाह का अनुष्ठापन/अनुबंधन धार्मिक मान्यताओं, प्रथाओं, रूढ़िगत संस्कारों और अनुष्ठानों, सप्तपदी, आशीर्वाद, निकाह, पवित्र बंधन, आनंद विवाह अधिनियम, 1909 के अन्तर्गत आनंद कारज तथा विशेष विवाह अधिनियम, 1954 व आर्य विवाह मान्यकरण अधिनियम, 1937 के अनुरूप किन्तु इनसे सीमित हुए बिना हो सकता हैं।

इसी प्रकार अनुच्छेद दो में विवाह और विवाह विच्छेद के पंजीकरण की चर्चा की गई है जिसमें कहा गया है कि संहिता के प्रारंभ होने के पश्चात अनुष्ठापित / अनुबंधित विवाह का अनिवार्य पंजीकरण - तत्समय लागू किसी भी अन्य विधि अथवा किसी रूढ़ी या प्रथा में किसी विपरीत बात के होते हुए भी, इस संहिता के प्रारंभ होने के पश्चात, राज्य में या उसके क्षेत्र के बाहर अनुष्ठापित / अनुबंधित विवाह, जहां विवाह का कम से कम एक पक्षकार राज्य का निवासी है, धारा 10 की उपधारा (1) के अन्तर्गत उल्लिखित प्रक्रिया के अनुसार पंजीकृत किया जाएगा, परन्तु यह कि धारा 4 और 5 के अन्तर्गत अपेक्षित आवश्यकताएं पूर्ण होती हों।

संहिता के प्रारंभ होने से पूर्व अनुष्ठापित/ अनुबंधित विवाह का पंजीकरण - (1) 26 मार्च 2010 व इस संहिता के प्रारंभ होने की तिथि के मध्य राज्य में अनुष्ठापित/ अनुबंधित कोई भी विवाह जहां विवाह / पंजीकरण के समय विवाह का कम से कम एक पक्षकार राज्य का निवासी था/ है, को धारा 10 की उपधारा (2) में उल्लिखित प्रक्रिया के अनुसार पंजीकृत किया जाएगा परन्तु उत्तराखंड विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 2010 (उत्तराखंड अधिनियम संख्या 19, वर्ष 2010) के अन्तर्गत पंजीकृत किसी भी विवाह को इस उपधारा के अन्तर्गत पुन: पंजीकृत करने की आवश्यकता नहीं होगी। इसी प्रकार उत्तराखंड विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 2010 (उत्तराखंड अधिनियम संख्या 19, वर्ष 2010) के अन्तर्गत पंजीकृत किसी भी विवाह के संबंध में, दोनों पक्षों में से किसी एक द्वारा इस संहिता के प्रारंभ होने की तिथि से छह माह की अवधि के भीतर उस उप-निबंधक के समक्ष विवाह के पंजीकरण की घोषणा प्रस्तुत की जाएगी, जिसके अधिकारिता क्षेत्र में विवाह अनुष्ठापित/अनुबंधित हुआ था या दोनों में से कोई एक पक्ष निवास करता है।

राज्य में 26 मार्च 2010 से पूर्व अथवा राज्य के बाहर संहिता लागू होने से पूर्व अनुष्ठापित/अनुबंधित कोई भी विवाह, जहां विवाह / पंजीकरण के समय विवाह का कम से कम एक पक्षकार राज्य का निवासी था/ है, धारा 10 की उपधारा (3) में उल्लिखित प्रक्रिया के अनुसार पंजीकृत किया जा सकता है, परन्तु यह कि इस धारा के अन्तर्गत विवाह तभी पंजीकृत किया जा सकता है जब निम्नलिखित शर्तें पूर्ण हों। पक्षकारों के मध्य विवाह का अनुष्ठान सम्पन्न हो चुका हो और वे तब से जीवनसाथी के रूप में एक साथ रह रहे हों। जब तक कि विवाह के समय किसी भी पक्षकार की रूढ़ी और प्रथा के अन्तर्गत अन्यथा अनुमन्य न हो, पंजीकरण के समय किसी भी पक्षकार का एक से अधिक पति/पत्नी जीवित न हो। पुरुष ने इक्कीस वर्ष की तथा स्त्री ने अठारह वर्ष की आयु पूर्ण कर ली हो। पक्षकार प्रतिषिद्ध नातेदारी की डिग्रियों के भीतर न हों। उपर्युक्त निषेध उन व्यक्तियों पर लागू नहीं होंगे जिनकी रूढ़ि और प्रथा के अन्तर्गत उक्त नातेदारी अनुमन्य है। ऐसी रूढ़ि और प्रथा लोकनीति और नैतिकता के विपरीत न हो।

संहिता के प्रारंभ होने के पश्चात पारित विवाह-विच्छेद या अकृतता के न्यायिक आदेश का पंजीकरण किया जाना है। इसके तहत राज्य के किसी भी न्यायालय द्वारा इस संहिता के प्रारंभ होने के पश्चात पारित विवाह-विच्छेद या विवाह की अकृतता की कोई भी आज्ञप्ति धारा 11 की उपधारा (1) में उल्लिखित प्रक्रिया के अनुरूप पंजीकृत किया जायेगा। राज्य के बाहर स्थित किसी भी न्यायालय द्वारा इस संहिता के प्रारंभ होने के पश्चात पारित विवाह-विच्छेद या विवाह की अकृतता की कोई भी आज्ञप्ति, जहां कम से कम एक पक्षकार राज्य का निवासी है, धारा 11 की उपधारा (2) में उल्लिखित प्रक्रिया के अनुरूप पंजीकृत किया जाएगा।

संहिता के प्रारंभ होने से पूर्व विवाह-विच्छेद या विवाह की अकृतता के आज्ञप्ति का पंजीकरण किया जाएगा जिसके अनुसार राज्य के किसी भी न्यायालय द्वारा इस संहिता के प्रारंभ होने से पूर्व, पारित विवाह-विच्छेद या विवाह की अकृतता की कोई भी आज्ञप्ति, धारा 11 की उपधारा (3) में उल्लिखित प्रक्रिया के अनुरूप पंजीकृत किया जा सकता है। राज्य के बाहर स्थित किसी भी न्यायालय द्वारा इस संहिता के प्रारंभ होने से पूर्व पारित विवाह-विच्छेद या विवाह की अकृतता की कोई भी आज्ञप्ति, जहां कम से कम एक पक्षकार राज्य का निवासी है, धारा 11 की उपधारा (4) में उल्लिखित प्रक्रिया के अनुरूप पंजीकृत किया जा सकेगा।

इसी प्रकार समान नागरिक संहिता कानून में कई महत्वपूर्ण व्यवस्थाएं और दी गई हैं जो आम आदमी के लिए काफी महत्वपूर्ण होंगी।

हिन्दुस्थान समाचार/ साकेती/रामानुज

   

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