सपा-कांग्रेस गठबंधन : बसपा को लग सकता है झटका, फायदे में रहेगी भाजपा

लखनऊ, 25 फरवरी (हि.स.)। लोकसभा चुनाव को लेकर सपा-कांग्रेस में गठबंधन से प्रदेश में बसपा को बड़ा झटका लगने की उम्मीद जतायी जा रही है। इससे भाजपा पिछले चुनाव की अपेक्षा फायदे में ही रहेगी। पिछले चुनाव में सपा के साथ गठबंधन कर 10 सीटें जीतने वाली बसपा इस बार एक भी सीट हासिल नहीं होने की स्थिति में पहुंचने का राजनीतिक विश्लेषक अनुमान लगा रहे हैं। वहीं भाजपा अपनी सीटें पुन: 2014 के आंकड़े को दोहरा सकती है।

2014 में नरेन्द्र मोदी की लहर में बसपा शून्य पर पहुंच गयी थी। उससे पहले चुनाव में 20 लोकसभा सीटों पर विजय पायी बसपा को तगड़ा झटका लगा। उसे 1,59,14,194 वोट मिले थे। कुल वोट शेयर 19.60 प्रतिशत था, पिछले चुनाव की अपेक्षा उसके वोट शेयर में 7.82 प्रतिशत की कमी आयी थी। उसके 34 उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे, इसके बावजूद उसकी एक सीट भी नहीं निकल पायी थी। प्रदेश में 42 प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे थे। वहीं समाजवादी पार्टी को पांच सीटें हाथ लगी थी। उसको 18 सीटों का नुकसान हुआ था। उसको 22.20 प्रतिशत वोट शेयर मिला था। सपा 31 सीटों पर दूसरे स्थान पर थी। वहीं भाजपा 78 सीटों पर चुनाव लड़कर 71 सीटें हासिल की थी। वहीं सात सीटों पर दूसरे स्थान पर थी। सहयोगी अपना दल ने दो सीटें हासिल की थी। भाजपा को 42.63 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे। वहीं अपना दल को एक प्रतिशत वोट एक प्रतिशत वोट मिला था।

2019 में साढ़े सात प्रतिशत भाजपा के बढ़े थे वोट

वहीं 2019 में भाजपा के वोट शेयर 7.35 प्रतिशत बढ़ गये। 2019 में इसको 49.98 प्रतिशत वोट मिले थे। इसके बावजूद सपा-बसपा गठबंधन के कारण नौ सीटों का नुकसान हुआ और 62 सीटों पर ही भाजपा जीत पायी। सर्वाधिक 80 लोकसभा सीटों वाले प्रदेश में भाजपा के विजय रथ को थामने के लिए कांग्रेस कर रही थी कि विपक्षी गठबंधन में सपा-रालोद के साथ बसपा भी आ जाए लेकिन मायावती का आना तो दूर रालोद ने भी गठबंधन से नाता तोड़ लिया। समाजवादी पार्टी के गठबंधन से भाजपा से नाराज वोटर सपा-कांग्रेस की तरफ रूख करेंगे। उनके बसपा के साथ जाने की उम्मीद कम है, लेकिन बसपा का अपना एक ठोस वोट बैंक है। वह उसके साथ रहेगा, जिससे सपा-कांग्रेस के गठबंधन से भाजपा फायदे में रह सकती है।

सपा-कांग्रेस और बसपा में बट जाएंगे मतदाता

मायावती तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए कहती रही हैं कि पूर्व में गठबंधन करने से कांग्रेस या सपा के वोट बसपा को ट्रांसफर नहीं हुए। ऐसे में पार्टी को लाभ न होने से अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ने का उनका निर्णय ‘अटल’ है। इस बीच मिशन क्लीन स्वीप के लिए भाजपा जहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रभाव रखने वाले रालोद को वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश के दलों को भी एनडीए में शामिल करने के साथ ही प्रभावशाली नेताओं को अपने पाले में लाने में जुटी हुई है। ऐसे में यह तो साफ है कि चुनाव में त्रिकोणीय लड़ाई देखने को मिलेगी। त्रिकोणीय लड़ाई होने से एनडीए को उन सीटों पर भी फायदा होने की उम्मीद है जहां खासतौर से मुस्लिम, दलित व पिछड़ों की आबादी है। सपा-कांग्रेस और बसपा में मतदाताओं के बंटने से एनडीए की जीत की संभावना बढ़ जाएगी।

दलित वोटों में भाजपा करती जा रही सेंधमारी

गौरतलब है कि पिछला चुनाव सपा-बसपा और रालोद के मिलकर लड़ने पर एनडीए 64 सीटों पर ही जीत सकी थी, वहीं बसपा को 10 और सपा को पांच सीटों पर सफलता मिली थी। कांग्रेस को सिर्फ रायबरेली सीट पर सफलता मिली थी। चूंकि अबकी सपा-कांग्रेस साथ है। इसलिए मुस्लिम मतों का एकतरफा झुकाव उसकी ओर होने से गठबंधन को तो फायदा हो सकता है लेकिन बसपा के लिए सिर्फ दलित वोट के दम पर किसी भी सीट पर जीत सुनिश्चित करना मुश्किल दिख रहा है। वैसे भी तमाम योजनाओं के दम पर भाजपा पहले ही दलितों में काफी हद तक सेंध लगा चुकी है। अपर कास्ट के साथ ही खिसकते दलित वोट बैंक का ही नतीजा रहा कि पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा 403 में से सिर्फ एक सीट पर जीती। एक बार फिर अकेले चुनाव लड़ने के निर्णय से मायावती के आगे न पलटने पर पार्टी के मौजूदा सांसद भी उनका साथ छोड़ते दिख रहे हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/उपेन्द्र/बृजनंदन

   

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