लोकसभा चुनाव -रायगढ़ सीट पर भाजपा कांग्रेस के बीच ही रहा कांटे का मुकाबला

रायगढ़ , 11 अप्रैल (हि.स.)।लोकसभा चुनाव को लेकर रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र में राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित इस सीट के पिछले 10 चुनावों की बात करें तो भाजपा को जहां 7 बार जीत मिली। वहीं कांग्रेस को महज 3 बार ही जीत का स्वाद चखने का मौका मिल पाया। वर्ष 2024 का चुनाव बेहद दिलचस्प होने जा रहा है। इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला रहा। दोनों दलों के बीच हार जीत में वोट प्रतिशत पर गौर करें तो पता चलता है कि तीन चुनावों में यह अंतर जहां एक- दो के करीब रहा। वहीं तीन चुनावों में हार जीत के अंतर का प्रतिशत 3 से 5 फीसदी रहा। जिससे इस बार के चुनाव को लेकर कांग्रेस जीत को लेकर बेहद उत्साहित नजर आ रही है। जबकि भाजपा लगातार पांच बार जीत के बाद इस चुनाव में भी खासा लीड का दावा कर रही।

दरअसल 2024 के चुनाव में रायगढ़ सीट को लेकर कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों की ओर से जीत का दावा कर रहे हैं। पिछले 10 लोकसभा चुनावों में 7 बार भाजपा ने रायगढ़ सीट पर जीत दर्ज की है। वहीं कांग्रेस केवल तीन बार ही जीत पाई। इस स्थिति में कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन के लिए अपने वोट का प्रतिशत बढ़ाने की सबसे बड़ी चुनौती है। राजनीति के जानकारों की मानें तो कांग्रेस के सामने अपना वोट बढ़ाने के लिए कुछ खास नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी की सत्ता जाने के बाद कार्यकर्ता हताश नजर आ रहे हैं। कार्यकर्ताओं को रिचार्ज करने के लिए कांग्रेस के पास फिलहाल ऐसी संजीवनी बूटी भी नहीं, जिससे कार्यकर्ता स्वस्फूर्त चुनाव कार्य में तन्मयता से जुट जाएं। पिछले पांच चुनावों में भाजपा की लगातार जीत से भाजपा में स्वाभाविक उत्साह नजर आ रहा है। लेकिन हार जीत के अंतर का प्रतिशत 2019 के चुनाव में करीब 5 प्रतिशत रहा। इस स्थिति में कांग्रेस इस बार महिला प्रत्याशी के सहारे चुनावी नैया पार लगने की जुगत में है। भाजपा ने जहां इस सीट से राधेश्याम राठिया को टिकट दिया है। वहीं कांग्रेस ने इस बार सारंगढ़ राजघराने से ताल्लुक रखने वाली मेनका सिंह को मैदान में उतारा है। बताया जाता है कि अपने पक्ष में वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने की सोच के साथ कांग्रेस ने महिला प्रत्याशी पर विश्वास जताया है। अब इस पर कांग्रेस को कितना फायदा होगा, यह उसके आगे की रणनीति पर निर्भर करेगा।

कांग्रेस की पुष्पा देवी सिंह यहां से तीन बार चुनाव जीतने में सफल रहीं। हालांकि कांग्रेस ने उन्हें 6 बार चुनाव लड़ने का मौका दिया। उसके बाद आरती सिंह को कांग्रेस ने एक बार मौका दिया, लेकिन सफलता नहीं मिली। भाजपा ने 2019 के चुनाव में पहली महिला प्रत्याशी को टिकट दिया और गोमती साय भाजपा की जीत को बरकरार रखने में कामयाब रहीं। इस बार कांग्रेस ने एक बार फिर प्रत्याशी बदलकर कर महिला को मौका दिया है। जबकि भाजपा की गोमती साय को विधानसभा चुनाव में जीत मिलने पर पार्टी ने यहां नया चेहरा मैदान में उतारा है। इस सीट के बीते 10 चुनावों की बात करें तो भाजपा पिछले 5 चुनाव में लगातार अपनी जीत बरकरार रखे हुए हैं। इस स्थिति में भाजपा और कांग्रेस को मिलने वाले मत प्रतिशत पर गौर करना जरूरी है। 2019 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को 48.76 प्रतिशत और कांग्रेस को 43.87 प्रतिशत मत मिले। जीत का अंतर करीब पांच प्रतिशत रहा। हालांकि इससे पहले 2014 के चुनाव में विष्णुदेव साय भाजपा प्रत्याशी थे, उन्हें 40.72 प्रतिशत वोट मिला और वे जीत गए थे। कांग्रेस प्रत्याशी आरती सिंह को महज 27.4 प्रतिशत मत ही मिल पाया था। खास बात यह है कि 2009 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी विष्णुदेव साय 30.99 प्रतिशत वोट पाकर भी जीत गए थे। उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी हृदयराम राठिया के हिस्से में मात्र 27.09 प्रतिशत वोट आए थे। उससे पहले भाजपा प्रत्याशी विष्णुदेव साय ने 2004के चुनाव में 50.74 वोट अर्जित किया था। कांग्रेस प्रत्याशी रहे रामपुकार सिंह 39.22 वोट पाकर पराजित हुए थे। इसी तरह 1999के चुनाव में भाजपा के विष्णुदेव साय ने 48.56 प्रतिशत पाकर पहली बार चुनाव जीता था। कांग्रेस प्रत्याशी पुष्पा देवी सिंह के खाते 47.45 प्रतिशत आए थे। इसतरह कांग्रेस लगातार पांच बार के चुनाव में सफल नहीं हो पाई। दो बार तो कांग्रेस के हिस्से में 27 प्रतिशत वोट आए। 1999 के चुनाव में 59.4 प्रतिशत वोट पड़े थे, महज एक प्रतिशत वोट के अंतर से कांग्रेस को पराजय का मुंह देखना पड़ा और भाजपा ने एक बार फिर इस सीट पर अपना कब्जा जमा लिया। इससे पहले 1988 के चुनाव में कांग्रेस से अजीत जोगी चुनाव मैदान में उतरे थे और उन्होंने भाजपा के नंदकुमार साय को महज एक प्रतिशत वोट के अंतर से पराजित कर दिया था। कांग्रेस के हिस्से 48.27 प्रतिशत वोट आए थे और भाजपा को 47.62 प्रतिशत वोट मिला था। इससे पहले 1996 के चुनाव में भाजपा के नंदकुमार साय 42.25 प्रतिशत वोट प्राप्त कर जीत दर्ज किया था। कांग्रेस की पुष्पा देवी सिंह को 40.76 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे। हार-जीत का अंतर करीब दो प्रतिशत वोट का रहा। हालांकि 1991 के चुनाव में कांग्रेस की पुष्पा देवी सिंह को 58.13 प्रतिशत वोट प्राप्त हुआ था। भाजपा के नंदकुमार साय 37.85 प्रतिशत वोट हासिल कर पराजित हुए थे। इससे पहले 1989 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी नंदकुमार साय को 49.74 प्रतिशत वोट हासिल हुआ था। कांग्रेस की पुष्पा देवी सिंह को 44.96 प्रतिशत वोट मिला था। हालांकि 1984 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी पुष्पा देवी सिंह ने 62.51 प्रतिशत वोट प्राप्त कर चुनाव जीता था। उस चुनाव में भाजपा के नंदकुमार साय को महज23.98 प्रतिशत वोट हासिल हुआ था। इस तरह बीते 10 चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला बेहद कांटे का रहा ।

दो बार कांग्रेस जहां 10 प्रतिशत से भी अधिक वोटों के अंतर से चुनाव जीतने में सफल रही। वहीं भाजपा भी दो बार के चुनाव में 10 प्रतिशत से अधिक वोट के अंतर से जीत दर्ज की थी। इस बार के चुनाव में दोनों ही राजनीतिक दल अपने- अपने हिस्से का वोट बढ़ाने का दावा कर रही हैं, यह देखना दिलचस्प होगा कि मतदाता किसके दावे पर मुहर लगाती है।

कांग्रेस पर गड्ढा पाटने की चुनौती-कांग्रेस को 2019 के चुनाव में करीब 66 हजार वोटों के अंतर से पराजय मिली थी। इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र की 8 विधानसभा सीट में से चार सीट जीती है। इन चारों सीटों पर कांग्रेस की जीत का अंतर 53122 वोटों का रहा। मसलन खरसिया, धरमजयगढ़, लैलूंगा और सारंगढ़ विधानसभा सीट पर कांग्रेस 53122 वोट के बढ़त पर है। हालांकि विधानसभा चुनावों में भाजपा की बढ़त चार सीटों पर 107374 वोट का है। विधानसभा चुनाव में मिली बढ़त के हिसाब से भाजपा आठों विधानसभा सीट में कुल 54252 वोट के बढ़त पर है। मतलब 2019 लोकसभा चुनाव और 2023 के विधानसभा चुनावों के आंकड़ों पर गौर करें तो भाजपा अपनी बढ़त बनाए हुए है। कांग्रेस दोनों ही चुनाव में 50 हजार से भी अधिक के गड्ढे़ में है। इसे पाटने की कांग्रेस के लिए सबसे पहली चुनौती है।

भाजपा को अपनी बढ़त पर भरोसा-भाजपा जहां इस सीट पर लगातार अपना दबदबा बनाए हुए है। भाजपा ने पिछ्ला चुनाव जहां 66 हजार की लीड के साथ जीता था। वहीं रायगढ़ विधानसभा की सीट के साथ जशपुर जिले की तीनों सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। विधानसभा चुनाव में इस संसदीय क्षेत्र से भाजपा को 107374 की लीड मिली थी।मसलन भाजपा का दबदबा कायम है। साथ ही भाजपा इस लोकसभा चुनाव में हर बूथ पर 150 अधिक वोट की लीड की तैयारी में है। ऐसे में भाजपा की बढ़त बढ़ने से वोटों का प्रतिशत बढ़ने की पूरी गुंजाइश दिखती है। भाजपा इसी रणनीति पर आगे बढ़ रही है।

हिन्दुस्थान समाचार/रघुवीर प्रधान

   

सम्बंधित खबर