जन्म और मरन का दुख बहुत बड़ा है। तभी तो लोग मुक्ति चाहते हैं: सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज

साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज अखनूर, जम्मू में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि जन्म और मरन का दुख बहुत बड़ा है। तभी तो लोग मुक्ति चाहते हैं। पर एक बात साफ है कि जब आंतरिक बुद्धि शुद्ध होगी, तभी यह बात मनुष्य समझेगा। यह कैसे छूटेगा। 

पाँच तत्व का पुतला बनाया गया। उसमें मन रूपी राजा समाया हुआ है। मन की हुकूमत चलती है। आत्मदेव अपना रूप नहीं जान पा रहा है। वो यह समझ रहा है कि मैं शरीर हूँ। इसलिए आवागमन शुरू हो गया। यहीं से बंधन है। बंधन का कारक और कारण मन है। मन ने ही पाप और पुण्य का विस्तार किया है। यह पूरा संसार मन है। मन को कोई देख नहीं पा रहा है। जो कुछ आप देख रहे हैं, सब मन है। मन के संकल्प के अनुसार ही मनुष्य कर्म करता है। हर क्रिया का प्रवर्तक ही मन है। आदमी कहता है कि मेरा इच्छा है। आपकी कोई इच्छा नहीं है। आप आत्मा हैं। मन की काम, क्रोध को उत्पन्न करता है। ये तरंगें मन उठाता है। ये आपकी नहीं हैं। पर मनुष्य सोचता है कि मेरी तरंगें हैं। आत्मा में ये चीजें नहीं हैं। 

सर्दी और गर्म का अनुभव हमारी त्वचा करती है। मन का अनुभव सुरति कर सकती है। ध्यान आत्मा है। ऋतु परिवर्तन का असर पड़ रहा है। आदमी अवसाद में आ रहा है। जब वसंत ऋति आती है तो आप पुलकिल रहते हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण सब ऋतुएँ बदल रही हैं। आदमी थोड़ी सी तकलीफ हो तो अवसाद में आ जाता है। ये सब चीजें मन की हैं। पूरी दुनिया मन और माया के नशे में है। आत्मा के साथ भयंकर धोखा हो रहा है। शरीर का रोम रोम मन का आज्ञाकारी है। जैसे सपने में सब सच लगता है। कितना भी बुद्धिमान होगा, जब सपने में जला जायेगा तो वो सत्य लगेगा। इस तरह कितना भी बुद्धिमान होगा, यह संसार सत्य लगेगा। जिस तरह जल का बुदबुदा है, ऐसे ही संसार की रचना है। बहुत बुरी तरह आत्मा को मन ने बाँधा हुआ है। नाम के अलावा जो कुछ भी भाव आपमें उठ रहे हैं, सब मन है। बिना सद्गुरु के कोई भी अपनी ताकत से इससे छूट नहीं सकता है।

   

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